अगले जनम मोहे श्वान ही कीजो !🐶
२००६ की फिल्म 'उमराव जान', जिस में विश्व सुंदरी , खूबसूरत अदाकारा ऐश्वर्या राय ने उमराव जान अदा की भूमिका निभायी, उसका एक गीत "अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो..." मैं सुन रही थी । मेरा ख़्याल भी इससे मिलता जुलता ही रहा करता है।आश्चर्यचकित होने सरीखा कुछ नहीं। जीवन के एक समय पश्चात किसी भी महिला या युगल नारी से पूछा जाये तो, भले ही, ऊपर से वह नारी शक्ति होने की बात करे, पर अंदर ही अंदर, एक न एक बार तो ख़्याल आया ही होगा। ख़ैर, विषय पर आते हैं।
कहते हैं कि, विकसित देशों के कुत्ते और विकासशील देशों के बच्चे बराबर होते हैं। शायद, सच ही लगता है। जीवन में कई अवसर आएं हैं, जब यह विचार प्रमाणित होते दिखाई देता है।
मेरे परिचय में ऐसी कई महिलाएं रही हैं, जिन्होंने विवाह बंधन में पड़ने का जोखिम न उठाकर, कुत्तों को पालने पोसने में ही अकलमंदी समझी। वे महिलाएं स्वयं भी काफ़ी पढ़ी लिखी और अपने पैरों पर खड़ी थी। एक दो कुत्ते नहीं उससे कहीं अधिक मात्रा में अकेले पालने की हिम्मत थी।
कुत्तों की देख रेख इंसानों से बेहतर होती है। इसमें कोई दो राय नहीं। एक बात तो सही है कि, कुत्ते पलट कर प्यार भी उतना ही देते हैं भैय्या। कहीं बाहर से आ जाओ तो ताकते इंतज़ार करते रहते हैं। और फिर ऐसा लपकते हैं, जैसे मानों कोई जंग जीतकर सकुशल घर लौट आया हो। ऐसा क़रीब क़रीब रोज़ाना होता है। कुछ नहीं, बस ऑफिस से थका हारा वापस घर आता है। क्या ऐसे दृश्य की फोटो किसी अख़बार या पत्रिका में छपती है? शायद नहीं ! पर यदि कोई विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण अंको से पास हो जाए तो घरवालों को अंदर से तो ख़ुशी होती ही है, पर आजकल कैमरा मैन के लिए कुछ एक्टिंग भी करनी पड़ती है। फिर क्या, दूसरे ही दिन से विद्यार्थी के पीछे पड़ जाते हैं, कि अब आगे क्या? आगे क्या सोचा है? कुत्ते, ये सब नहीं पूछते। बड़े साफ़ और ललित होते हैं। कई मामलों में तो कुत्ते मनुष्यों से अधिक संवेदनशील और समझदार होते हैं। कोई डिमांड्स नहीं। बस खाना पीना और हल्का सा सहलाना है, ... बस!
बचपन में , विद्यार्थी होने के नाते माता पिता संस्कृत भाषा में नीति श्लोकों का उदहारण देकर हमें सही राह दिखलाते थे, एवं सही राह पर चलने का, उच्चकोटि के मनुष्य बनाने के लिए उत्साहित भी किया करते थे (वैसे,उच्चकोटि के मनुष्य बने की नहीं इसपर विचार बाद में किया जाएगा फिलहाल,आगे बढ़ाते हैं !)
जैसे:
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
हिन्दी भावार्थ:
एक विद्यार्थी मे यह पांच लक्षण होने चाहिए.. कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह सोना / निंद्रा अल्पाहारी, आवश्यकतानुसार खाने वाला और गृह-त्यागी होना चाहिए ।
सच है, मनुष्यों से गुण सीखने से बेहतर है, पशुओं से सीखें !
मैं भी कहीं न कहीं कुत्ता प्रेमी हूँ। कुत्ते पाले भी थे। बहुत खेला भी उनके साथ। अब जब कुत्ता पालने की इच्छा अंदर से अग्निबाण की भाँती होती है, तो यूट्यूब वीडियोज़ का ही सहारा लेना पड़ता है। बहुत ख़ुशी देता है।हँस और खिलखिला भी लेती हूँ। नींद न आती हो तो कुत्तों को देख कर सो जाती हूँ। सारे दुःख, अहंकार, विषैली भावनायें, विश्व की अशान्तियाँ, सब मानो छूमंतर हो जातें हैं | उनकी नटखट अदाएं देख मज़ा आता है। नींद भी अच्छी आती है। वैसे, मैंने महसूस किया की कुछ लोग इतने होशियार हैं कि, पैसा कमाने का ज़रिया बनाते हैं-- कुत्तों की छोटे चलचित्र बनाकर। पर वह भी कठिन कार्य है, कुत्ते का मज़ेदार वीडियो बनाना आसान तो नहीं है, बहुत क्रिएटिविटी और धैर्य का काम है। मनुष्य अब कुत्तों से धैर्य सीख रहा है! कुत्तों की मनमोहक अदाएं और नटखट बातें दिखाते चॅनेल अब उनके नाम से मर्चैंडाइज भी बेचने लगे हैं, जैसे हुडी, कैप, कॉफ़ी मग, टी शर्ट वगैरह। भाई प्रेम का व्यापार है। क्यों नहीं ??
कुत्तों को जिस तरह से इज़्ज़त और प्यार ज़मानों से मिलता चला आ रहा है, वह अतुलनीय है। राजा महाराजाओं को घोड़ों संग कुत्तों के साथ भी फोटो खिचवाते थे। सुन्दर सुनहरी फोटो फ्रेम में डाल, महल की एक महत्त्वपूर्ण दीवार पर टांगा जाता था। आज भी कुछ ऐसा ही है, बस तरीका बदल गया है। अब हम फ़ोन और लैपटॉप के वॉलपेपर पर कुत्तों की फोटो लगाते हैं, की चलो इंसानों से नहीं प्यारे पप्पी की फोटो देख मन शीतल हो जाये। थोड़ा मुस्कुरा लें। कुछ इस तरह :
कितना महत्त्वपूर्ण योगदान है कुत्तों का समाज पर, जो छुपा हुआ है। क्या कुत्ते या श्वान से अच्छा कोई जीव है जिसमें समझदारी, वफादारी, बेइंतेहा शर्तरहित प्यार, घर कि देख रेख करने वाला, असली इज़्ज़त कमाने वाला, हिम्मती और कई सारे... ये सब गुण हैं? क्यों न मन करेगा श्वान बनने का ?
प्यार दो, प्यार लो ! सिंपल फंडा है दोस्त ...!!!





