
एक संवाद ख़ुद से....
उसने मुझे कुछ कहा
मैंने, उसे कुछ बोला
फिर, उसने मुझे कुछ कहा
फिर मैंने, उसे कुछ बोला
उसने मुझे कुछ पूछा
मैंने, उसे कुछ पूछा
फिर, मैंने उसे कुछ पूछा
फिर उसने, मुझे कुछ पूछा
उसने पूछा, मैंने, ऐसा क्यूं बोला?
मैंने भी उत्तर में उसे पूछा...
तुमने, ऐसा क्यूं पूछा?
तुमने, ऐसा कहा था ना!?!
तो मैंने, ऐसा है बोला।
फिर वो बोला कि,
नहीं तो! मैंने तो ऐसा ना बोला!!
क्यूं झूठ बोलते हो ?
सब याद है.... क्या कहा क्या बोला,
बहस है किस बात की?
ख़ुद से ख़ुद की?
या कोई और है,
जिसने कहा - बोला - पूछा?
हां! केवल मन मती ही नहीं,
है कोई तीसरा भी,
जिसने बोया है यह बीज।
क्या है कोई चौथा?
निवारण कर सके इसका?
था यह,
एक संवाद ख़ुद से !
संयुक्ता कशालकर