Saturday, December 19, 2020

अमृता प्रीतम: मैं तैनू फेर मिलांगी......... | Amrita Pritam: Main Tainu Pher Milangi | संयुक्ता कशालकर: मैं तुम्हें फिर मिलूंगी..... | Sanyukta Kashalkar: Main Tumhe Phir Milungi



An Ode To Amrita Pritam by Sanyukta Kashalkar

महान लेखिका और कवियत्री अमृता प्रीतम जी की सुंदर पंजाबी कविता- "मैं तैनू फेर मिलांगी", ये मेरी बहुत ही चहेती कविता है| जब भी पढ़ती हूँ, सुनती हूँ, उतनी ही अच्छी लगती जाती है| वह रोमांटिक- प्रोग्रेस्सिविज़्म के दौर और स्टाइल की बेहतरीन लेखिका साबित हुई. मैंने कई बार सोचा कि, "मैं तैनू फेर मिलांगी" का मेरा रूपांतर क्या हो सकता है, उसका उत्तर तो कभी नहीं मिला ! पर इसे प्रेरणा स्तोत्र कि तरह मान कर मैंने छोटी सी चेष्टा की है...... साथ ही मैंने पढ़ने वालों के लिए "मैं तैनू फेर मिलांगी" का  गुरुमुखी, पंजाबी और हिंदी अनुवाद भी नीचे दिया है, जिससे अमृता जी द्वारा लिखी गयी कविता का रस भी उठा सकें..... 

A tribute to Amrita Pritam from me... one of her ardent fans ....... Following is a video where the same poem is recited by another legend Gulzar.

Amrita Pritam- Mein Tenu phir Milangi::Gulzar


ਮੈਂ ਤੈਨੂ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਕਿੱਥੇ ? ਕਿਸ ਤਰਹ ਪਤਾ ਨਈ

ਸ਼ਾਯਦ ਤੇਰੇ ਤਾਖਿਯਲ ਦੀ ਚਿਂਗਾਰੀ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਤੇ ਉਤਰਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਦੇ ਉੱਤੇ

ਇਕ ਰਹ੍ਸ੍ਮ੍ਯੀ ਲਕੀਰ ਬਣ ਕੇ

ਖਾਮੋਸ਼ ਤੈਨੂ ਤਕ੍ਦੀ ਰਵਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਸੂਰਜ ਦੀ ਲੌ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਰਂਗਾ ਵਿਚ ਘੁਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਰਂਗਾ ਦਿਯਾ ਬਾਹਵਾਂ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਨੁ ਵਲਾਂਗੀ

ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਸ ਤਰਹ ਕਿੱਥੇ

ਪਰ ਤੇਨੁ ਜਰੁਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਇਕ ਚਸ਼੍ਮਾ ਬਨੀ ਹੋਵਾਂਗੀ

ਤੇ ਜਿਵੇਂ ਝਰ੍ਨਿਯਾਁ ਦਾ ਪਾਨੀ ਉਡ੍ਦਾ

ਮੈਂ ਪਾਨੀ ਦਿਯਾਂ ਬੂਂਦਾ

ਤੇਰੇ ਪਿਂਡੇ ਤੇ ਮਲਾਂਗੀ

ਤੇ ਇਕ ਠਂਡਕ ਜੇਹਿ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੀ ਛਾਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਲਗਾਂਗੀ

ਮੈਂ ਹੋਰ ਕੁੱਛ ਨਹੀ ਜਾਨਦੀ

ਪਰ ਇਣਾ ਜਾਨਦੀ ਹਾਂ

ਕਿ ਵਕ੍ਤ ਜੋ ਵੀ ਕਰੇਗਾ

ਏਕ ਜਨਮ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਤੁਰੇਗਾ

ਏਹ ਜਿਸ੍ਮ ਮੁਕ੍ਦਾ ਹੈ

ਤਾ ਸਬ ਕੁਛ ਮੂਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈਂ

ਪਰ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਧਾਗੇ

ਕਾਯਨਤੀ ਕਣ ਹੁਨ੍ਦੇ ਨੇ

ਮੈਂ ਓਨਾ ਕਣਾ ਨੁ ਚੁਗਾਂਗੀ

ਤੇ ਤੇਨੁ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

मैं तैनू फ़िर मिलांगी

कित्थे ? किस तरह पता नई

शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के

तेरे केनवास ते उतरांगी

जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते

इक रह्स्म्यी लकीर बण के

खामोश तैनू तक्दी रवांगी

जा खोरे सूरज दी लौ बण के

तेरे रंगा विच घुलांगी

जा रंगा दिया बाहवां विच बैठ के

तेरे केनवास नु वलांगी

पता नही किस तरह कित्थे

पर तेनु जरुर मिलांगी

जा खोरे इक चश्मा बनी होवांगी

ते जिवें झर्नियाँ दा पानी उड्दा

मैं पानी दियां बूंदा

तेरे पिंडे ते मलांगी

ते इक ठंडक जेहि बण के

तेरी छाती दे नाल लगांगी

मैं होर कुच्छ नही जानदी

पर इणा जानदी हां

कि वक्त जो वी करेगा

एक जनम मेरे नाल तुरेगा

एह जिस्म मुक्दा है

ता सब कुछ मूक जांदा हैं

पर चेतना दे धागे

कायनती कण हुन्दे ने

मैं ओना कणा नु चुगांगी

ते तेनु फ़िर मिलांगी

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी

कहाँ किस तरह पता नही

शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन

तेरे केनवास पर उतरुंगी

या तेरे केनवास पर

एक रहस्यमयी लकीर बन

खामोश तुझे देखती रहूंगी

या फ़िर सूरज कि लौ बन कर

तेरे रंगो में घुलती रहूंगी

या रंगो कि बाहों में बैठ कर

तेरे केनवास से लिपट जाउंगी

पता नहीं कहाँ किस तरह

पर तुझे जरुर मिलूंगी

या फ़िर एक चश्मा बनी

जैसे झरने से पानी उड़ता है

मैं पानी की बूंदें

तेरे बदन पर मलूंगी

और एक ठंडक सी बन कर

तेरे सीने से लगूंगी

मैं और कुछ नही जानती

पर इतना जानती हूँ

कि वक्त जी भी करेगा

यह जनम मेरे साथ चलेगा

यह जिस्म खतम होता है

तो सब कुछ खत्म हो जाता है

पर चेतना के धागे

कायनात के कण होते हैं

मैं उन कणों को चुनुंगी

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !!


This poem has always been one of my favorites and inspires me to write and express my thoughts.

Inspired by Amrita  Pritam's poem, I have made a humble attempt to write my version of the poem, titled "Main tumhe phir milungi". The poem talks about the simple and the most lovable memories of a woman's love-of-her-life, that could not really flourish and she wants to give it another chance. 

YouTube Video where I have read my poem for the readers of this blog can be heard here- https://www.youtube.com/watch?v=-zj24QpWLF4




मैं तुम्हें फिर मिलूंगी.....

कहां? कैसे? मैं नहीं जानती,

पर हां! मैं जरूर मिलूंगी....


क्या याद है तुम्हें, वो आम की बगिया?

उस आम की नीची तगड़ी डाली पर,

गर्म हवा को झेलते, पैरों को लटकाए, 

तुम मेरी फोटो खीचते, और मैं गुनगुनाती,

घंटों कुछ ना बोलना, तो कभी मेरी बकबक सुनते रहना,

क्या तुम मुझे वहीं मिलोगे? मैं मिलना चाहूंगी |


मैं तुम्हें फिर मिलूंगी...

कहां? कैसे? मैं नहीं जानती,

पर हां, मैं जरूर मिलूंगी....


क्या याद है तुम्हें, वो पैदल चलते थे साथ कितना,

ना थकना ना बैठना, बस साथ चलते जाना,

एक एक कंकड़, एक एक पेड़, 

सब मुस्कुराते थे, देख तुम्हें और मुझे, 

अब गुज़रते हैं, जब उन रास्तों से,

कुछ अटपटे और नाराज़ से दिखते है मुझे,

क्या तुम मुझे वहीं मिलोगे? मैं मिलना चाहूंगी|


मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,

कहां? कैसे? मैं नहीं जानती,

पर हां, मैं जरूर मिलूंगी....


याद तो होगा ही, वो चीनीमिट्टी का गमला, 

जो तुमने मुझे दिया था, वो आज भी है मेरे मेज़ पर, 

रखती हूँ उनमें, मेरी क़लम और पेंट ब्रश,

जब भी कुछ लिखती हूँ, जब भी कुछ बनाती हूँ,

उसी गमले को देखकर, सोचती हूँ,

क्या कभी तुम मिलना चाहोगे? मैं मिलना चाहूंगी |


मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,

कहां? कैसे? मैं नहीं जानती,

पर हां, मैं जरूर मिलूंगी....


-संयुक्ता कशालकर  


Main Tumhe Phir Milungi by Sanyukta Kashalkar संयुक्ता कशालकर: मैं तुम्हें फिर मिलूंगी

 

Image courtsey: https://twitter.com/rupinderkw/status/923625958271221761

https://www.hindustantimes.com/cities/amrita-pritam-had-prophesied-her-heir-to-be-a-writer-of-next-generation/story-cdJOz9ck8IYxLs1GUvDlNN.html

Gulzar's Video Credit:  https://www.youtube.com/watch?v=CP3UqZJ89do

Gurbani Script: http://amritapritamhindi.blogspot.com/2008/06/blog-post_05.html