Sunday, May 31, 2020

सारे दोष मुझमें ही?

Im human. Im allowed to have faults. Remember that no one is ...

सारे दोष मुझमें ही? 

गलती जीवन का एक पन्ना है,
कोई भी नाता एक किताब है,
एक पन्ने के लिए ,
क्या  पूरी किताब जलादें? 

पन्ने को फाड़ कर,
फेकना है सही,
या हर बार उस पन्ने को,
कुरेद कर तड़पाना है बेहतर?

बार बार क़ब्र को खोद,
कितना और करना विश्लेषण?
बस करो अब बस!
थोड़ा स्वतः भी करलो चिंतन ।

आइने में अपने  प्रतिबिंब को देखो,
कभी ख़ुद से सवाल पूछो,
शायद मन शांत होगा तुम्हारा,
जब सवाल कर उत्तर मिलेगा तुमको। 

जब तुम्हारा मन चाहे,
तब तुम बात करना चाहो,
जब तुम्हारा मन ना चाहे,
तब घांस भी ना डालो! 

तुम ये चाहो कि लोग ,
तुम्हारे हिसाब से चलें,
पर तुमने सोचा है कभी?
तुमसे भी हैं उम्मीदें।

अहंकार का नाश हो तुममें,
वर्चस्व का नाश हो तुममें,
क्रोध का नाश हो तुममें,
असहिष्णुता का नाश हो तुममें।

क्षमा करना प्रिय मेरे,
मैंने ही गलत किया हो अगर,
पर एक बार सोचो ये...
क्या सारे दोष मुझमें ही थे ?

संयुक्ता कशालकर 

Saturday, May 23, 2020

कहानी एक रात की



कहानी एक रात की 

कहानी है एक रात की 
रात , एक गहरी रात थी  
घना चारों ओर अन्धेरा था 
न बिजली और  ना  कोई डेरा ।

चाँद भी फीका सा 
सितारे भी कहीं बहुत दूर 
अमावस बस बीती ही थी 
रात काली काली थी ।

एक अकेला आदमी था 
कहीं पीछे छूट गया था 
चलता जा रहा था , शून्य में 
कुछ बहका , कुछ सहमा सा ।

एक झोला लिए उम्मीद के साथ 
कि कोई दिख जाए , पूछने हाल 
पर मजाल है, की कोई दिख जाए ,
उस काली काली रात ?

थक कर चूर जब बैठा वो 
सोचा उसने क्या करेगा वो ?
मनाने लगा बस सुबह  हो
भागूँ मैं, अपनी जगह को  !

न कुछ खाने को , न कुछ पीने को 
भूँके पेट ही बैठ गया वो 
कुछ पल बीत गया था यूँ बैठे ही 
डर भी और नींद भी ।

धीरे धीरे पलकें बंद होने लगीं 
पर झटक कर फिर उठ जाता वो 
फिर सोता फिर उठता 
बस यही सिलसिला चलता रहता ।

कोई आहट हो या न हो 
पर मत कहता , सावधान रहो 
नींद भी होनी थी जरूरी 
करनी  थी अगले दिन यात्रा पूरी ।

बस सो ही गया था थोड़ा सा वो 
की उसे लगा , हुई कोई हलचल 
बिना आँख खोले ही ,समझाया खुद को 
बस बहुत हुआ नादान ! अब सो लो !

पर मन न माना , पलकें हलकी सी खोलकर 
देखा इधर और उधर , फिर कर ली बंद 
झटक के खोली पूरी आखें 
याद आया! था कुछ अलग ।

एकदम से देखा , एक डंडा और एक महिला 
घबरा कर उठ गया और चींखा 
महिला ने दिखाया अपना चेहरा 
उसने बोला , "मैं हूँ मैं !" ।

हो गया बेहोश बेचारा 
महिला ने मारा उसे डंडा 
फिर चींख निकली तेज़ 
भौंचक रह गया बेचारा ।

समझ लिया की ये था एक सपना 
बगल में थी उसकी सोती दिलरुबा 
दौड़ निकला अँधेरी रात में घर 
याद आया उसे पत्नी का डंडा । 

क़सम खाई फिर नहीं करूंगा 
अपनी बीवी से कोई धोका 
ऐसी  हो बीवी जिसकी 
घर रहे उतना ही निहाल ! 

संयुक्ता कशालकर 

Sunday, May 17, 2020

जब अंतिम सांस होगी प्रथम सांस

Summer SAD: How to Tell If You Have It

कुछ दिनों पूर्व, दैनिक पत्रिका  में मैंने पढ़ी एक दर्दनाक कहानी जो जीवन के एक पहलू को बताती है, उसपर लिखी मेरी कविता :

जब अंतिम सांस होगी प्रथम सांस

मुझे जीवन दिया किसी ने
जब जानता है मन
फिर भी क्यूं पूछता रहता है
क्यूं आया मैं धरती पर ?

हर दिन झेलते हैं कुछ
हर दिन का वही श्रम
फिर भी खुद को समझाते
शायद यही है जीवन अनुभव !

पल भर की खुशियां होती हैं ओझल
पर दुख के बादल कभी ना मद्धम
फिर भी मन को सहलाते रहते
कभी तो ! चमकेगा सूर्य और चंद्रमा देगा ठंडक

प्रतिदिन सूक्ष्मता कीओर अग्रसर
मन फिर भी क्यूं रहता आकुल
जब जीवन सच है ज्ञात तो
फिर भी क्यूं प्रसार करने को आतुर ?

इतना सब देख समझ और कर विचार
यही मन विचलित करता हर क्षण
क्या  तभी शांत होगा मेरा मन?
जब अंतिम सांस होगी प्रथम सांस।

Sanyukta Kashalkar

Friday, May 15, 2020

मूरख पास तो कैसी आस?

प्रस्तुत कविता मेरे  निजी, व्यावसायिक और अव्यावसायिक जीवन में आये-गए कुछ महानुभावों  के साथ, जो समय व्यतीत किया और उसकी अनुभूति का एक सार है। जब कुछ लोग खुद जीवन जीना भूलकर, दूसरों पर अपने विचार मूर्खतावश थोपते हैं तो, बाकी मानस को क्या क्या झेलना पड़ता है, उसका मेरी कविता द्वारा छोटा सा प्रयास। 

मूरख पास तो कैसी आस?

शब्द कम पड़ेंगे, कुछ ऐसे हैं उदाहरण
मानस के चहुं ओर, बसता है प्रदूषण
उन  जनों का जो मूरख़ हैं, ना जाने क्या देता है
उन्हें सतत् जीने का मक़सद ?

पर कहीं शायद वे भूल जाते हैं
कि सहन करता है उन्हें कोई हरदम
कभी बोल कर तो कभी नजरअंदाज कर
मूरख है ना ! नासमझी है दम पर।

चकित तो मन होता है तब
जब नासमझ को मिलता है अवसर
पर कहीं खुद को महान बताने का सतत विचार
दूर कर देता है उसके निंदक।

अब निंदक नहीं पास तो किसका डर ?
सदा उत्तेजित, व्याकुल और संदेह कर
अन्य को भी गुत्थी में उलझाना
इसी में मिलती है जैसे उसे चैना।

तांक झांक कर सभी को उलझाना
इधर से उधर और फिर ,उधर  की इधर करना
अनावश्यक प्रश्नों के बाण मारना ,और दिखाना अपना वर्चस्व
उसे लगता है, यही बनाता है उसे मनमोहक।

पर मूरख से क्या मुंह  लगना ?
मूरख पास तो कैसी आस लगाना ?
कदाचित हम स्वयं को सिखाते 
हम वो ना  करें, जो वो करे जाते।


  

संयुक्ता कशालकर

Thursday, May 14, 2020

ग्रीष्म

इलाहाबाद / प्रयागराज और उज्जैन में ग्रीष्म ऋतु  के साथ मेरे कुछ अनुभव -- इस कविता में लिखित हैं ।  प्रस्तुत कविता, ऋतुओं के आगमन और प्रस्थान के बीच, मनुष्य के जीवन को कैसे बनाता है, उसपर कैसे असर डालता है; माया मोह के आकर्षण से प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उससे बाहर आना और उम्मीद कायम रखना, अपने तरीके से  सिखलाता है, उसका सरल भाषा में उल्लेख है | 

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ग्रीष्म

जब फूलों का गुलदस्ता ,
बहार लाती ऋतु वसंता ,

कहीं लाल कहीं गुलाबी ,
कहीं नील कहीं सिंदूरी ,

हरे रंग की चादर पर,
प्रकृति दिखती हो जैसे अमर |

मन प्रति पल होता प्रफुल्लित,
चक्षु देख वह रंगीन मधुमास,

ऋतुराज का होता आकर्षण , 
जब होली में रंगते नर नार  |

मंत्रमुग्ध इतने हो जाते , 
कि मानो अब यही संसार ,

पर ऋतुराज सब पर जादू कर  ,
धीरे से कहता नमस्कार |

मोहक कर सबका जीवन ,
वह आयेगा अगले साल ,

और आता है फिर से  ,
पसीना बहाने कि बहार  |

ग्रीष्म का आगमन होते ही ,
सब होते हैं परेशान ,

कि अब करे भी क्या ! इस गर्मी में ,
सूरज ही बनेगा सबका यार  |

जीवन शैली में बदलाव, जैसे ,
कपास के पोशाक आते बाहर ,

भीनी माटी के माठ में ,
शीतल जल करता निहाल |

ऋतु कुसुमाकर जहां देकर ,
गया था रंगो का आशीर्वाद ,

वहीं ग्रीष्म का रंग प्यारा  ,
होता है पीला और भूरा |

माटी की सतह सूखकर ,
खेतों से गेहूं उठकर ,

आता है आंधियों का मेला ,
संग लता धूल का सामान  |

कुछ  मन मस्तिष्क को बेहलाने वाला ,
प्रकृति का आशीष है अमृतफल ,

पीला रंग मीठा मीठा ,
हरा रंग खट्टा खट्टा  | 

कुछ सुख देकर जाता है ,
अम्रखंड अमरस पन्ना ,

मुरब्बा और अचार ,
और उसके पेड़ की ठंडी छांव |

सब चाहें बस घर में रहकर ,
शीतल पवन का सेवन कर कर ,

शरीर को मिले बस ठंडक ,
मनाते बस यही पल पल,

कब जाएगा ग्रीष्म काल का असर ?
और फिर आए  मेघ बहार |

हर तरफ बादल ही बादल ,
करे उष्म धरा को शीतल  ,

कर दे अचला को मनमोहक,
इसी आशा में दीपक जला कर, 

कि फिर आएंगे कई त्योहार  ,
उसी आम के पेड़ पर  ,

डलेंगे झूले कई बार,
हस्ते खेलते सभी नर नार ,

फिर भूलेंगे  कि अगले  साल ,
ग्रीष्म का आगमन होगा , फिर एक बार |

संयुक्ता कशालकर

Wednesday, May 13, 2020

sanyukta s. kashalkar: BANDHAVGARH

sanyukta s. kashalkar: BANDHAVGARH: On my experience to a trip to Bandhavgarh Wildlife Sanctuary and when I saw the tiger. I must mention here that I am thankful to my fathe...

BANDHAVGARH

On my experience to a trip to Bandhavgarh Wildlife Sanctuary and when I saw the tiger. I must mention here that I am thankful to my father, Late Shri. Sanjeev Kashalkar who took all of us and Gulwadi family and Bhattacharya family on this trip. The adventure we had and the priceless memory I have of each moment is invaluable. I dedicate this poem to my father, who taught me to plan trips and brought confidence in me that travelling can do a lot more what a school can't do! 



The poem below is the unedited, original version and typed the way I wrote in 2003. I could have edited, I know there are mistakes, but I wanted to keep it the way it is because it is pure and straight from the heart. 

Guide to Bandhavgarh National Park and Tiger Reserve - Breathedreamgo
BANDHAVGARH

It was a desire; and
It got fulfilled !
A desire to at least experience,
What a jungle is ?

A resort called Bandhavgarh,
A wildlife sanctuary,
Which was quite heard of, 
Its importance being,
The most no. of tigers present, 
For us which was the biggest present !

Our family and our comrades, 
All together began our journey,
Towards the most exclusive trip ever, 
Everyone excited with having faith,
In each one's fate,
Whether we could see the tiger,
Never mind even if its late.

Ultimately the day approached, 
People living there were having, 
A total safari approach, 
With T-shirts having a tiger's picture, 
A summer-ish hat; Khakhi pants, 
To catch the real life experience,
They had cameras in hands !

A panoramic view it gave!
Oh! I wonder for those, 
Who are with them always !
They help travelers to cope with them,
Awaiting to start the real life journey, 
To experience the wildlife there.

A deep observation being done by me, 
With trees and trees all around,
Birds chirping of all types, 
And deers of all kinds walking around,
Guides with a walky-talky in hand,
Tracking, if any tiger on land,
"Its New! Its New " ! Yelled the guide,
"The paws are new on the sand",
Felt as if, the stomach sinking,
Like, as if got the magical wand !

Suddenly he got the message,
The guide guided the driver to drive through the edges,
It was as if entering a story's climax,
We were now heading towards to see the tigers, 
There on the rocky hill !
Our eyes caught hold of it,
Oh the view, the drastic image; mesmerized we were,
The queen with the royal walk,
Oh ! what to talk.

A dream come true it was,
The black stripes on the golden background,
With large rocks and oak trees around,
An instant curiosity came in my heart,
If I can see it as close as I can,
As God had heard what was there in my heart,
The elephants had come employed for that part.

We sat on it,
It crushed the trees; thinking itself as a king,
We reached up the hill; saw the tigers,
With her cubs in an open den,
Oh ! what to say, if that is life!
It washed our friendly minds.


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Poem by: Sanyukta Kashalkar

Poem written on: Started on 12th August 2003 and finished on 14th August 2003


मैं एक अणु मात्र ही हूं


कैसे एक अणु मात्र ही है जीवन का सत्य |

smallest particle we know
   

मैं एक अणु मात्र ही हूं

मैं ही धरा मैं ही नभ
मैं ही पवन मैं ही जल
इनका निर्माण करती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं

मैं ही अग्नि मैं ही वर्षा
मैं ही शुष्क मैं ही भांप
मृगतृष्णा बनाती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं

मैं ही वृक्ष मैं ही सुमन
मैं ही पशु मैं  ही नर
प्राण इनको देती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं

मैं ही दिवस मैं ही रात्र
मैं ही मध्याह्न मैं ही सांझ
सदा चलाती रहती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं

मैं ही ऊर्जा मैं ही शक्ति
मैं ही सौर मैं ही शांति
संतुलित करती रहती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं

इस ब्रम्हांड की रचना में
तिनका तिनका जुटाने में
कुशल संसार बनाती  हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं

संयुक्ता कशालकर

Monday, May 11, 2020

मैं और चींटियां

चीटियां हमेशा लाइन में ही क्यों चलती ...

उज्जैन में रहने के मेरे अनुभवों में  से एक | जीवन में व्यंग |

मैं और चींटियां 


जिस जगह में बसती हूँ मैं
है वहां प्रकृति का भण्डार 
जिस भी दिशा में देखूँ मैं 
अन्तःमन हो जाता  ख़ुशगवार 

कहीं हैं सतत फुदकती अनेक चिड़िया 
तो कहीं मुक्तात्मा श्वान 
चहुँ ओर हैं गुलमोहर चटक 
तो हैं कहीं वर्षा  के सरोवर 

शीतल पवन शरीर को छूकर 
लाती सुगंध अनेक प्रकार 
भूरी माटी के कुछ टीलों में
बसते हैं सर्प हज़ार 

कुछ और प्रजातियों का है निवास
चीटियां, कीड़े, बिच्छू का अम्बार 
बहुत प्रेम करते हैं मुझसे 
मच्छर और मकौड़ों के प्रकार 

जहाँ भी देखते हैं मुझे 
पीछे पीछे आते जाते
जहाँ मच्छरों का खाना हूँ मैं
चीटियां उठा ले जाती मेरा आहार 

अब ये समझ आ गया है मुझे 
चीटियों की कर मेहमान नवाजी से 
कार्य में बाधा डाल कर 
समय वाया कराती हैं 

जीतनी छोटी होती हैं चीटियां 
उत्कृष्ट आखेटक होतीं हैं  वे 
सब साथ मिल करते हैं शिकार 
सीखना होगा उनसे ,जीवन जीने का आधार 

सच तो है ये  कि निवास तो था उनका
हम ही थे बिन बुलाये मेहमान 
तो क्यों न दिखाए ये जीव वर्चस्वभाव  
तभी प्रकृति का हो उद्धार 

संयुक्ता कशालकर 


Sunday, May 10, 2020

Peanut Chaat | Quick Easy Healthy | Oil Free Snack



Hello Friends ! I am back with a tangy and delicious snack recipe: Peanut Chaat. It's easy and quick to make. The best part is its healthy and nutritious snack. It has the goodness of Peanut Protein, Vitamin-C of lemon and green chilies, Sulfur of onions. Following are the ingredients: Raw Peanuts Onion Tomato Lemon Green Chilies Coriander Salt to taste Chaat Masala


Recipe By: Sanyukta Kashalkar

Oats Cheela | Oats Pancake | Easy and Healthy | Breakfast Recipe | Sanyukta Kashalkar



Hey friends! Welcome. Presenting before you: Oats Cheela or Pancake. This is very healthy and easy to make. Following are the ingredients [for two persons]: Oats Semolina/ Sooji / Rawa Onion Carrot Green Chilies Curry leaves Coriander White Sesame / Til Oil Water Salt to taste


Recipe By: Sanyukta Kashalkar

Sponge Gourd Sabji | Gilki Sabji | Healthy and Easy | Summer | Lunch |

Sponge Gourd Sabji | Gilki Sabji | Healthy and Easy | Summer | Lunch |


Hello viewers! Welcome back. This is a vegetable recipe which is made of Sponge Gourd or Gilki. Its nutritious and very tasty. You can make it for lunch or tiffin and have with Chapati / Roti / Plain Paratha. Below are the ingredients [for 4 people]: Sponge Gourd / Gilki / Nenuva Crushed roasted Peanuts Onion Green Chilies Garlic (2 cloves) Curry Leaves Coriander Powder Garam Masala Powder Oil Salt to taste

https://www.youtube.com/watch?v=e2zYEV_iGUg&t=9s

Recipe By: Sanyukta Kashalkar

Banana Shake | Vegan | Soya Milk and Jaggery



Banana Shake | Vegan | Soya Milk and Jaggery

Recipe for a delicious, thick and healthy Banana Milkshake. This is Vegan as it is made of Soya milk instead of dairy milk. Ingredients (For 1 glass): 1 large banana / 2 small bananas Soya milk (unsweetened, No flavor) Jaggery powder/ sugar Vanilla essence

https://www.youtube.com/watch?v=EKdI9vrL4g0&t=21s

Recipe by : Sanyukta Kashalkar

Sooji Balls | Spongy & Bouncy | Breakfast/ Snack | सूजी से बना कम तेल में आसान और मजेदार नाश्ता

Sooji Balls | Spongy & Bouncy | Breakfast/ Snack | सूजी से बना कम तेल में बड़ा ही आसान और मजेदार नाश्ता Main Ingredients: Semolina/ Sooji Water Oil Green Chillies Salt to taste Crushed Black pepper Coriander

https://www.youtube.com/watch?v=k0m7XA7rnIY&t=66s

Recipe By: Sanyukta Kashalkar

कविता: मेरी मां


मदर्स डे के उपलक्ष पर मैंने लिखी कविता अपनी मां श्रीमति संध्या कशालकर पर :

मेरी मां 

मेरी मां है प्यारी मां
इतना प्रेम झलकाती मां

संध्या उसका नाम ही नहीं
संध्या की परिभाषा है मां

सायंकाल की भांति ही
सूर्य चन्द्र का मिलन कराती मां

दिन प्रतिदिन अपने करकमलों से
प्रेंपूर्वक भोजन बनाती मां

मन में दीप जलाती हरदिन
देती ढेर सारा आशीर्वाद

कभी रूठ जाते अगर हम
फिर भी ना हार मानती मां

कभी बिगड़ जाती हो तबीयत
दिन रात सेवा करती मां

सही दिशा की ओर लेजाना
स्वावलंबी  बनाती मां   

हर कठिनाई का सामना कर
किया है उसने हमें बड़ा

अब बारी है हमारी
कुछ प्रतिशत कर पाएं सेवा तुम्हारी

तो हो पाएं सफल जीवन हमारा
पाकर, संध्या जैसी मेरी मां
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तुम्हारी बेटी संयुक्ता कशालकर