Sunday, May 10, 2020

कविता: मेरी मां


मदर्स डे के उपलक्ष पर मैंने लिखी कविता अपनी मां श्रीमति संध्या कशालकर पर :

मेरी मां 

मेरी मां है प्यारी मां
इतना प्रेम झलकाती मां

संध्या उसका नाम ही नहीं
संध्या की परिभाषा है मां

सायंकाल की भांति ही
सूर्य चन्द्र का मिलन कराती मां

दिन प्रतिदिन अपने करकमलों से
प्रेंपूर्वक भोजन बनाती मां

मन में दीप जलाती हरदिन
देती ढेर सारा आशीर्वाद

कभी रूठ जाते अगर हम
फिर भी ना हार मानती मां

कभी बिगड़ जाती हो तबीयत
दिन रात सेवा करती मां

सही दिशा की ओर लेजाना
स्वावलंबी  बनाती मां   

हर कठिनाई का सामना कर
किया है उसने हमें बड़ा

अब बारी है हमारी
कुछ प्रतिशत कर पाएं सेवा तुम्हारी

तो हो पाएं सफल जीवन हमारा
पाकर, संध्या जैसी मेरी मां
----
तुम्हारी बेटी संयुक्ता कशालकर

10 comments:

Gautam R Karve said...

Nice poem, Sanyukta! 👌

Gayatri Apoorv said...

*शब्दों का सागर भी,
छोटा पड़ जाता है ।
जब मां की महिमा का
वर्णन किया जाता है।*
बहुत ही सुन्दर लिखा है संयुक्ता दीदी, कितना भी पढ़ लूं मन नहीं भर रहा।

Unknown said...

सुंदर अभिव्यक्ति👌👌 व भावपूर्ण ❤कविता है संयुक्ता

भक्ति

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

Dhanyawaad

unknown said...

Great ! You are a wonderful daughter ..... Sandhya is lucky :)

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

Thank you Didi!

Unknown said...

Ati sundar!

unknown said...

🙏🌷🌷

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

धन्यवाद 🙏

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

धन्यवाद 🙏