Monday, May 11, 2020

मैं और चींटियां

चीटियां हमेशा लाइन में ही क्यों चलती ...

उज्जैन में रहने के मेरे अनुभवों में  से एक | जीवन में व्यंग |

मैं और चींटियां 


जिस जगह में बसती हूँ मैं
है वहां प्रकृति का भण्डार 
जिस भी दिशा में देखूँ मैं 
अन्तःमन हो जाता  ख़ुशगवार 

कहीं हैं सतत फुदकती अनेक चिड़िया 
तो कहीं मुक्तात्मा श्वान 
चहुँ ओर हैं गुलमोहर चटक 
तो हैं कहीं वर्षा  के सरोवर 

शीतल पवन शरीर को छूकर 
लाती सुगंध अनेक प्रकार 
भूरी माटी के कुछ टीलों में
बसते हैं सर्प हज़ार 

कुछ और प्रजातियों का है निवास
चीटियां, कीड़े, बिच्छू का अम्बार 
बहुत प्रेम करते हैं मुझसे 
मच्छर और मकौड़ों के प्रकार 

जहाँ भी देखते हैं मुझे 
पीछे पीछे आते जाते
जहाँ मच्छरों का खाना हूँ मैं
चीटियां उठा ले जाती मेरा आहार 

अब ये समझ आ गया है मुझे 
चीटियों की कर मेहमान नवाजी से 
कार्य में बाधा डाल कर 
समय वाया कराती हैं 

जीतनी छोटी होती हैं चीटियां 
उत्कृष्ट आखेटक होतीं हैं  वे 
सब साथ मिल करते हैं शिकार 
सीखना होगा उनसे ,जीवन जीने का आधार 

सच तो है ये  कि निवास तो था उनका
हम ही थे बिन बुलाये मेहमान 
तो क्यों न दिखाए ये जीव वर्चस्वभाव  
तभी प्रकृति का हो उद्धार 

संयुक्ता कशालकर 


8 comments:

unknown said...

Amazing San! This shows the other side of you :)

Unknown said...

Ab to Ujjain aana hi padega ! Bahut achcha

Unknown said...

waah waah! nayi baat

unknown said...

👍😊

Unknown said...

Nice! Nice thought in the end :)

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

Thanks 👍

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

धन्यवाद 🙏

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

Aaiye aiye.... Avashya