
कुछ दिनों पूर्व, दैनिक पत्रिका में मैंने पढ़ी एक दर्दनाक कहानी जो जीवन के एक पहलू को बताती है, उसपर लिखी मेरी कविता :
जब अंतिम सांस होगी प्रथम सांस
मुझे जीवन दिया किसी ने
जब जानता है मन
फिर भी क्यूं पूछता रहता है
क्यूं आया मैं धरती पर ?
हर दिन झेलते हैं कुछ
हर दिन का वही श्रम
फिर भी खुद को समझाते
शायद यही है जीवन अनुभव !
पल भर की खुशियां होती हैं ओझल
पर दुख के बादल कभी ना मद्धम
फिर भी मन को सहलाते रहते
कभी तो ! चमकेगा सूर्य और चंद्रमा देगा ठंडक
प्रतिदिन सूक्ष्मता कीओर अग्रसर
मन फिर भी क्यूं रहता आकुल
जब जीवन सच है ज्ञात तो
फिर भी क्यूं प्रसार करने को आतुर ?
इतना सब देख समझ और कर विचार
यही मन विचलित करता हर क्षण
क्या तभी शांत होगा मेरा मन?
जब अंतिम सांस होगी प्रथम सांस।
Sanyukta Kashalkar
11 comments:
Wowwww..... this one is my favourite.... too many flavours in one poem ....very nice Munmun
Thank you so much !
Tum kitane saral shabdon mein gehri baaton ko kehti ho sanyukta..... main bhi soch mein pad geyee ......Likhati Raho
Thank you didi!
Hmmm.... Nice and deep!
Ab to kitaab chapvalo !
Hehe thanks 😊
Pranam Didi 🙏🙏🙏
Deep thought
Thanks
Namaste 🙏
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