Sunday, May 31, 2020

सारे दोष मुझमें ही?

Im human. Im allowed to have faults. Remember that no one is ...

सारे दोष मुझमें ही? 

गलती जीवन का एक पन्ना है,
कोई भी नाता एक किताब है,
एक पन्ने के लिए ,
क्या  पूरी किताब जलादें? 

पन्ने को फाड़ कर,
फेकना है सही,
या हर बार उस पन्ने को,
कुरेद कर तड़पाना है बेहतर?

बार बार क़ब्र को खोद,
कितना और करना विश्लेषण?
बस करो अब बस!
थोड़ा स्वतः भी करलो चिंतन ।

आइने में अपने  प्रतिबिंब को देखो,
कभी ख़ुद से सवाल पूछो,
शायद मन शांत होगा तुम्हारा,
जब सवाल कर उत्तर मिलेगा तुमको। 

जब तुम्हारा मन चाहे,
तब तुम बात करना चाहो,
जब तुम्हारा मन ना चाहे,
तब घांस भी ना डालो! 

तुम ये चाहो कि लोग ,
तुम्हारे हिसाब से चलें,
पर तुमने सोचा है कभी?
तुमसे भी हैं उम्मीदें।

अहंकार का नाश हो तुममें,
वर्चस्व का नाश हो तुममें,
क्रोध का नाश हो तुममें,
असहिष्णुता का नाश हो तुममें।

क्षमा करना प्रिय मेरे,
मैंने ही गलत किया हो अगर,
पर एक बार सोचो ये...
क्या सारे दोष मुझमें ही थे ?

संयुक्ता कशालकर 

15 comments:

Unknown said...

Well written Sanyukta. Keep it up.

unknown said...

Bahut Khoob Sanyukta!

Sadhana Joshi said...

Nice poem Sanyukta !

Unknown said...

Tumame koi dosh ho hi nahi sakte Sanyukta! Lovely girl Lovely poem !

Unknown said...

Sawaal Sahi poochati ho

Unknown said...

Sahi

Unknown said...

बहुत सुंदर कहा है

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

धन्यवाद🙏

unknown said...

Expressive poems.

unknown said...

बहुत सुंदर मैडम 🙏

unknown said...

दोनों ही कविताएं सराहनीय है... 👌🏻👌🏻

ASTRO PRAYAG SANGAM said...

सराहनाय प्रयास।

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

धन्यवाद 🙏

Sanyukta Kashalkar-Karve said...

धन्यवाद 🙏

Unknown said...

Nice Madam