Covid-19 के इस भयानक दौर में मेरे कुछ शब्द| जो देखा, जो महसूस किया ....
ये कैसा प्रलय आया है ?
ये कैसा प्रलय आया है ?
न कोई दिखता है, न कोई भटकता है,
न कोई सुनता है, न कोई सुनाता है,
सूनसान रास्ते, सूनसान गलियां हैं,
पंछी उड़ गए सारे कहीं जैसे ,
बस घोंसलें है जो शांत हैं,
तरसते उन चहचहाटों को,
शून्य की भाँती ये समय है,
जहाँ सदा ही कौतुहल, जहाँ सदा ही दौड़,
जहाँ सदा ही निंदा, जहाँ सदा ही प्रसन्नता,
जहाँ सदा ही द्वेष, जहा सदा ही एकता,
तो फिर सहसा ये क्या हुआ?
कौन ये विदेशी शरीर में आया?
सारे दुःख पीड़ा ,एक साथ ही ,अनुभव में लाया,
अपनों की ही अंतिम यात्रा में,
अपनों का ही न आना !
इतनी यातना, इतना परिश्रम देख- समझ,
आया मनुष्यता का ऐसा समय,
एहसास हुआ क्या छूट गया पीछे,
और क्या है पाया?
सतर्क हमेशा रहकर ही,
तामसिकता का नाश कर,
पद, कद, काठ, रंग, जात,
सब आ खड़े हुए एक समान,
सिखा गया सबको, सविनयता का पाठ,
एक विदेशी आकर, कर गया सबका नाश !
-संयुक्ता कशालकर
Image Courtesy: https://www.paho.org/en/news/25-3-2020-similarities-and-differences-covid-19-and-influenza

25 comments:
Nice poem, Sanyukta!
Thanks!
Very true
Man ki bat keh di Sanyukta!
Sach hai !
Thanks Sadhana !
Sach hai !
Thanks Sadhana !
Sach hai bhai.... Pralay hi hai
Sach Kaha Sanyukta
Very well written.
वर्तमान की प्रासंगकिता का सटीक विश्लेषण
वर्तमान स्थिति की प्रासंगिक अभिव्यक्ति
भक्ति
धन्यवाद ,🙏
Well narrated
Very well thoughts....shayad abhi sbhi ke man me yahi chal raha hai.
Thanks a lot Anshu Ji... How are you all ?
Thanks a lot Anshu Ji... How are you all ?
Your both poem touched my heart. Thanks for giving the proper word which I was searching.
Thanks a lot Saurabh ji.... Which word exactly?
बहुत सुंदर मैडम 🙏
आप बहुत अच्छा लिखती हैं ।
धन्यवाद 🙏
Truth of 2020
Yes!
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