कैसे एक अणु मात्र ही है जीवन का सत्य |

मैं एक अणु मात्र ही हूं
मैं ही धरा मैं ही नभ
मैं ही पवन मैं ही जल
इनका निर्माण करती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं
मैं ही अग्नि मैं ही वर्षा
मैं ही शुष्क मैं ही भांप
मृगतृष्णा बनाती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं
मैं ही वृक्ष मैं ही सुमन
मैं ही पशु मैं ही नर
प्राण इनको देती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं
मैं ही दिवस मैं ही रात्र
मैं ही मध्याह्न मैं ही सांझ
सदा चलाती रहती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं
मैं ही ऊर्जा मैं ही शक्ति
मैं ही सौर मैं ही शांति
संतुलित करती रहती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं
इस ब्रम्हांड की रचना में
तिनका तिनका जुटाने में
कुशल संसार बनाती हूं
मैं एक अणु मात्र ही हूं
संयुक्ता कशालकर
10 comments:
Wow! Thats very deep Sanyukta!
Thanks !
Gehri baat
This one is marvelous Sanyukta
Thanks
Wow amazing...just read all your poems
बहुत सुंदर मैडम 🙏
Superb Thought!
Thanks
धन्यवाद 🙏
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