इलाहाबाद / प्रयागराज और उज्जैन में ग्रीष्म ऋतु के साथ मेरे कुछ अनुभव -- इस कविता में लिखित हैं । प्रस्तुत कविता, ऋतुओं के आगमन और प्रस्थान के बीच, मनुष्य के जीवन को कैसे बनाता है, उसपर कैसे असर डालता है; माया मोह के आकर्षण से प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उससे बाहर आना और उम्मीद कायम रखना, अपने तरीके से सिखलाता है, उसका सरल भाषा में उल्लेख है |

ग्रीष्म
जब फूलों का गुलदस्ता ,
बहार लाती ऋतु वसंता ,
कहीं लाल कहीं गुलाबी ,
कहीं नील कहीं सिंदूरी ,
हरे रंग की चादर पर,
प्रकृति दिखती हो जैसे अमर |
मन प्रति पल होता प्रफुल्लित,
चक्षु देख वह रंगीन मधुमास,
ऋतुराज का होता आकर्षण ,
जब होली में रंगते नर नार |
मंत्रमुग्ध इतने हो जाते ,
कि मानो अब यही संसार ,
पर ऋतुराज सब पर जादू कर ,
धीरे से कहता नमस्कार |
मोहक कर सबका जीवन ,
वह आयेगा अगले साल ,
और आता है फिर से ,
पसीना बहाने कि बहार |
ग्रीष्म का आगमन होते ही ,
सब होते हैं परेशान ,
कि अब करे भी क्या ! इस गर्मी में ,
सूरज ही बनेगा सबका यार |
जीवन शैली में बदलाव, जैसे ,
कपास के पोशाक आते बाहर ,
भीनी माटी के माठ में ,
शीतल जल करता निहाल |
ऋतु कुसुमाकर जहां देकर ,
गया था रंगो का आशीर्वाद ,
वहीं ग्रीष्म का रंग प्यारा ,
होता है पीला और भूरा |
माटी की सतह सूखकर ,
खेतों से गेहूं उठकर ,
आता है आंधियों का मेला ,
संग लता धूल का सामान |
कुछ मन मस्तिष्क को बेहलाने वाला ,
प्रकृति का आशीष है अमृतफल ,
पीला रंग मीठा मीठा ,
हरा रंग खट्टा खट्टा |
कुछ सुख देकर जाता है ,
अम्रखंड अमरस पन्ना ,
मुरब्बा और अचार ,
और उसके पेड़ की ठंडी छांव |
सब चाहें बस घर में रहकर ,
शीतल पवन का सेवन कर कर ,
शरीर को मिले बस ठंडक ,
मनाते बस यही पल पल,
कब जाएगा ग्रीष्म काल का असर ?
और फिर आए मेघ बहार |
हर तरफ बादल ही बादल ,
करे उष्म धरा को शीतल ,
कर दे अचला को मनमोहक,
इसी आशा में दीपक जला कर,
कि फिर आएंगे कई त्योहार ,
उसी आम के पेड़ पर ,
डलेंगे झूले कई बार,
हस्ते खेलते सभी नर नार ,
फिर भूलेंगे कि अगले साल ,
ग्रीष्म का आगमन होगा , फिर एक बार |
संयुक्ता कशालकर
9 comments:
Bahut sundar! You have shown the cycle of life beautifully !
Okay... Thanks!
Allahabad ki yaad dilaldi ! bahut achche
Garmi ke dino ka itna sundar explanation.....
बहुत सुंदर मैडम 🙏
Nice
Thanks 😊
धन्यवाद 🙏
Hehe thanks 😊
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